- कविता से:
(क) गुड़िया को कौन, कहाँ से और क्यों लाया है ?
उ: गुड़िया को कवि लेकर आया है। मेले में एक बुढ़िया नुक्कड़ पर बेच रही थी। कवि को वह गुड़िया अच्छी लगी तो मोल-भाव कर उसे घर ले आया।
(ख) कविता में जिस गुड़िया की चर्चा है वह कैसी है ?
उ: कविता में कवि ने जिस गुड़िया की चर्चा की है वह छोटी-सी प्यारी गुड़िया है। वह आँखें खोल मूँद सकती है, पिया-पिया बोलती है। उसने सितारों से जड़ी लाल रंग की चुनरी पहन रखी है। उसकी आँखें बड़ी, काली और मतवाली है। वह बहुत सलोनी है।
(ग) कवि ने अपनी गुड़िया के बारे मे अनेक बातें बताई हैं। उनमें से दो बातें लिखो।
उ: कवि कहते है कि वह उस सलोनी गुड़िया को जिसने उसका बालमन जीत लिया है, उस खिलौनों की अलमारी में कागज़ के फूलो की रंगारंग फुलवारी में रखेंगे। गुड़िया को नये-कपड़े तथा सुंदर गहनों से सजाएँगे। खिलौनों की दुनिया में उसे परी बनाकर रखेंगे।
- तुम्हारी बात
(क) ” खेल-खिलौनों की दुनिया में तुमको परी बनाऊँगा।” बचपन में तुम भी बहुत से खिलौनों से खेले होगें। अपने किसी खिलौने के बारे में बताओ।
उ: हाँ, बचपन में मैं अपने मित्रों के साथ अनेक खेल खेलती थी। मेरे पास एक प्यारी सी गुड़िया थी। मुझे याद है मैं उसके छोटे-छोटे कपड़े बनाती, उसे सजाती, छोटे-छोटे मोतियों से उसके जेवर बनाती। हम गुड्डा- गुड़िया की शादी करते। सब दो गुटों में बट जाते। गुड़ियावाले लड़कीवाले और गुडडे वाले लड़केवाले बन जाते थे । फिर हम गुड्डा -गुड़िया का ब्याह रचाते। सब पैसे जमाकर मिठाईयाँ लाते और खूब नाच-गाना, खाना-पीना करके मस्ती करते। बच्चे होकर बड़ों के जैसे जिम्मेदारी निभाने में बहुत मजा आता। मेरी गुड़िया मेरे लिए परी जैसी थी। मैं उसे दिन-रात अपने पास रखती थी।
(ख) “मोल-भाव करके लाया हूँ, ठोक-बजाकर देख लिया।”
अगर तुम्हें अपने लिए कोई खिलौना खरीदना हो तो तुम कौन-कौन सी बातें ध्यान में रखोगे?
उ: अगर मैं अपने लिए कोई खिलौना खरीदूँगी तो मैं यह देखूँगी कि वह खिलौना मजबूत है ताकि वह काफी दिनों तक चले। अगर कहीं से टूटा-फूटा है या कोई कमी है तो वह भी देखूँगी। दुकानदार अगर खिलौंने के ज्यादा पैसे माँग रहा हो तो मैं मोल-भाव कर कम पैसे दूँगी।
(ग) “मेले से लाया हूँ इसको, छोटी-सी प्यारी गुड़िया”
यदि तुम मेले में जाओगे तो क्या खरीदकर लाना चाहोगे और क्यों ?
उ: अगर मैं मेले में जाऊँगा तो अपने मन-पसंद के खिलौने लाऊँगा। अगर कपड़े अच्छे हो तो वह भी खरीदूँगा। अपनी पसंद की मिठाईयाँ खरीदूँगा।
- मेला
भारत में अनेक अवसरों पर मेले लगते हैं। कुछ मेले तो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं।
(क) तुम अपने प्रदेश के किसी मेले के बारे में बताओ। पता करो कि वह मेला क्यों लगता है ? वहाँ कौन-कौन से लोग आते हैं और वे क्या करते हैं ? इस काम में तुम पुस्तकालय या बड़ों की सहायता ले सकते हो।
उ: हमारे प्रदेश में एक भव्य मेला लगता है। यह मेला मंदिर से संबंधित है। यह मेला वसंत ऋतु के आगमन होते ही लगता है। मंदिर में पूजा, आरती होती है, लोग दर्शन करने दूर-दूर से आते है। मेले में कई प्रकार की दुकानें लगती है जैसे कपड़े, खिलौने, मिठाईयाँ, मिठाइयों की। लोग बड़े उत्साह से खरीदारी करते है। मेले में झूले भी लगते है। हम बच्चे झूलों का खूब मजा लेते है।
(ख) तुम पुस्तक-मेला, फिल्म-मेला और व्यापार-मेला आदि के बारे में जानकारी प्राप्त करो और बताओ कि अगर तुम्हें इनमें से किसी मेले में जाने का अवसर मिले तो तुम किस मेले में जाना चाहोगे और क्यों ?
उ: वैसे तो मेरी पुस्तक-मेले, फिल्म – मेला और व्यापार – मेला, तीनों में रुचि हैं परंतु मेरा ज्यादा रुझान पुस्तक मेला देखने में है। पुस्तक हमारे अच्छे तथा पुराने साथी है। पुस्तकों से हमें हमेशा लाभ मिलता रहेगा। यह ज्ञानवर्धन होने के साथ-साथ पथ प्रदर्शक भी होते हैं। पुस्तक मेला में हमें अनेकों प्रकार की पुस्तकें देखने को मिलती है, जैसे कहानियों की, विज्ञान की, कविताओं की और अनेक विषयों की। हमें कोई पुस्तक पसंद आए तो हम खरीद भी सकते है।
- घर की बात
तुम्हारे घर की बोली में इन शब्दों को क्या कहते हैं?
(क) गुड़िया – गुड्डी (ख) फुलवारी – बगीचा
(ग) नुक्कड़ – नुक्कड़ (घ) चुनरी – दुपट्टा
- मैं और हम
मैं मेले से लाया हूँ इसको
हम मेले से लाए हैं इसको
ऊपर हमने देखा कि यदि ‘मैं’ के स्थान पर ‘हम’ रख दे तो हमें वाक्य में कुछ और शब्द भी बदलने पड़ जाते हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए दिए गए शब्दों को बदलकर लिखो।
(क) मैं आठवीं कक्षा में पढ़ती हूँ।
हम आठवीं कक्षा में पढ़ते हैं।
(ख) मैं जब मेले में जा रहा था तब बारिश होने लगी।
हम जब मेले में जा रहे थे तब बारिश होने लगी।
(ग) मैं तुम्हें कुछ नहीं बताऊँगी।
हम तुम्हें कुछ नहीं बताएँगे।
- शब्दों की दुनिया
दिए गए शब्दों के अंतिम वर्ण से नए शब्द का निर्माण करो-
- मेला – लाल लगन नया याद
- पिया – याद दाना नाचना नमक
- खोल – लौकी कपड़ा डमरु रात
- शिशुमन – नाक कागज जहाज जीवन