मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए।
- दाँत पीसना – गुस्सा करना।
– मेरे देर से घर पहुँचने पर पिताजी दाँत पीसने लगे।
- मुँह सँभालकर बोलना – सोच-समझकर बोलना।
– मनुष्य को दूसरों के सामने मुँह सँभालकर बोलना चाहिए।
- इज्जत मिट्टी में मिलना – इज्जत बर्बाद होना।
– राजन ने अपने कृत्यों से परिवार की इज्जत मिट्टी में मिला दी थी।
- तू-तू, मैं-मैं होना – कहासुनी होना।
– दोनों पड़ोसियों के बीच दिन-रात तू-तू, मैं-मैं होती रहती थी।
- पाठ से
(क) बच्चों ने मंच की व्यवस्था किस प्रकार की?
उ: मोहल्ले के बच्चों ने मिल-जुलकर फालतू पेड़ एक छोटे से सार्वजनिक मैदान में दूब व फूल-पौधे लगाए थे। वही एक मंच भी बना लिया था।
(ख) पर्दे की आड़ में खड़े अन्य साथी मन-ही-मन राकेश की तूरतबुद्धि की प्रशंसा क्यों कर रहे थे?
उ: पर्दे की आड़ में खड़े अन्य साथी मन-ही-मन राकेश कि तूरतबुद्धि की प्रशंसा कर रहे थे क्योंकि मोहन, सोहन और श्याम ने अपने मूर्खता से राकेश की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया था। लेकिन राकेश ने समझदारी से मंच पर वातावरण सँभाल लिया था। सभी दर्शक जो पहले समझ रहे थे कि नाटक बिगड़ गया है अब यह सब समझे की नाटक में ही नाटक की तैयारी की कठिनाइयों और कमजोरियों को दिखाया गया है। वे सब नाटक देख उसकी प्रशंसा कर चले गए।
(ग) नाटक के लिए रिहर्सल की ज़रूरत क्यों होती है?
उ: नाटक का मंच बिना तैयारी के नहीं होता। नाटक में काफी किरदार अभिनय करते हैं इसलिए सबमें अच्छी साँठ-गाँठ होना चाहिए। अच्छे-अच्छे कलाकार भी बिना रिहर्सल के घबरा जाते हैं। अगर कलाकार नए हैं तो स्वाभाविक है वे घबरा जाएँगे। उन्हें कब, कहँ क्या बोलना है भूल जाते हैं, जिसका असर नाटक पर हो सकता है। इसलिए नाटक के लिए रिहर्सल जरूरी होता है।
- नाटक की बात
“जब नाटक में अभिनय करने वाले कलाकार भी नए हों, मंच पर आकर डर जाते हों, घबरा जाते हों और कुछ-कुछ बुध्दु भी हों, तब तो अधूरी तैयारी से खेलना ही नहीं चाहिए।”
(क) ऊपर के वाक्य में नाटक से जुड़े कई शब्द आए हैं; जैसे – अभिनय, कलाकार और मंच आदि।
तुम पूरी कहानी को पढ़कर ऐसे ही और शब्दों की सूची बनाओ।
तुम इस सूची की तालिका इस प्रकार बना सकते हो–
व्यक्तियों या वस्तुओं के नाम | काम |
कलाकार, मंच | अभिनय |
चित्रकार, ब्रश, पेंट | चित्रकारी |
संगीतकार, वायलिन | स्वर लहरी |
राकेश, कुर्सी | डायरेक्टर (निर्देशक) |
मोहल्ले वाले | दर्शक |
- तुम्हारे संवाद
“श्याम घबरा गया। वह सहसा चुप हो गया। उसके चुप होने से चित्रकार और शायर महोदय भी चुप हो गए। होना यह चाहिए था कि दोनों कोई बात मन की ही बनाकर बात आगे बढ़ा देते।”
अगर तुम श्याम की जगह पर होते, तो अपने मन से कौन से संवाद जोड़ते। लिखो।
उ: अगर मैं श्याम की जगह पर होता, तो मैं यह संवाद बोलता:- मैं संगीतकार हूँ। मेरे संगीत में वह शक्ति है जिससे पशु-पक्षी भी मोह जाते हैं, वर्षा होने लगती है, दीप जल उठते हैं। संगीत हर बीमारी का इलाज है।
- सोचो, ऐसा क्यों?
नीचे लिखे वाक्य पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दो।
“राकेश को गुस्सा भी आ रहा था और रोना भी।”
(क) तुम्हारे विचार से राकेश को गुस्सा और रोना क्यों आ रहा होगा?
“राकेश मंच पर पहुँच गया। सब चुप हो गए, सकपका गए।”
उ: राकेश को गुस्सा इसलिए आ रहा था क्योंकि मोहन, सोहन और श्याम ठीक से अभिनय नहीं कर रहे थे और रोना इसलिए आ रहा था कि उसने जो उन लोगों और नाटक पर मेहनत की थी सब व्यर्थ हो गया था। उसे लग रहा था कि उसकी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी।
(ख) तुम्हारे विचार से राकेश जब मंच पर पहुँचा, बाकी सब कलाकार क्यों चुप हो गए होंगे?
“दर्शक सब शांत थे, भौंचक्के थे।”
उ: राकेश के हाथ में चोट लग गई थी, जिसकी वजह से वह अभिनय नहीं कर रहा था। अचानक से उसके मंच पर आ जाने से सब चुप हो गए और सकपका गए।
(ग) दर्शक भौंचक्के क्यों हो गए थे?
“मैंने कहा था न कि रिहर्सल में भी यह मानकर चलो कि दर्शक सामने ही बैठे हैं।”
उ: दर्शक समझ रहे थे कि मोहन, सोहन और श्याम अपना पार्ट भूल गए हैं, उनका नाटक बिगड़ गया है। इसलिए सब हँस कर लोट-पोट होकर मजे ले रहे थे। राकेश ने मंच पर आकर सारी बात सँभाल ली थी। सबको ऐसा प्रतीत कराया कि नाटक में ही नाटक है। इसलिए दर्शक बहुत भौंचक्के हो गए थे।
(घ) राकेश ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उ: राकेश ने अपने कलाकारों को समझाने के लिए ऐसा कहा था परंतु इस तरह से कहा कि दर्शकों को लगे कि वह नाटक का ही हिस्सा है। ऐसा कर उसने बिगड़ती बात सँभाल ली थी।
- शब्दों का फेर
“जब संगीत के स्वर लहरी गूँजती है तो पशु-पक्षी तक मुग्ध हो जाते हैं, शायर साहब! आप क्या समझते हैं संगीत को?”
इस संवाद को पढ़ो और बताओ कि–
(क) कहानी में इसके बदले किसने, क्यों और क्या बोला? तुम उसको लिखकर बताओ।
उ: संगीतकार अपना संवाद भूल गए थे और घबराहट में राकेश की बात ठीक से सुन नहीं पाए और कह दिया कि ‘ जब संगीत की स्वर लहरी गूँजती है तो पशु-पक्षी तक मुँह की खा जाते हैं, गाजर साहब! आप क्या समझते हैं हमें?”
(ख) कहानी में शायर के बदले गाजर कहने से क्या हुआ? तुम भी अगर किसी शब्द के बदले किसी अन्य शब्द का प्रयोग कर दो तो क्या होगा?
उ: कहानी में शायर के बदले गाजर कहने से शायर साहब नाराज हो गए और दर्शक जोर से हँस पड़े। हम भी अगर किसी शब्द के बदले अन्य शब्द का प्रयोग करेंगे तो हास्यस्पद लगेगा।
- तुम्हारा शीर्षक
इस कहानी का शीर्षक ‘ नाटक में नाटक ‘ है। कहानी में जो नाटक है तुम उसका शीर्षक बताओ।
उ: कहानी में जो नाटक है उसका शीर्षक यह होना चाहिए:- ” कला की महानता “।
- समस्या और समाधान
कहानी में चित्रकार बना मोहन, शायर बना सोहन और संगीतकार बना श्याम अपनी-अपनी कला को महान बताने के साथ एक-दूसरे को छोटा-बड़ा बताने वाले संवादो को बोलकर झगड़े की समस्या को बढ़ावा देते दिख रहे हैं। तुम उन संवादों को गौर से पढ़ो और उसे इस तरह बदलकर दिखाओ कि आपसी झगड़े की समस्या का समाधान हो जाए। चलो शुरूआत हम कर देते हैं; जैसे– ‘ चित्रकार कहता है उसकी कला महान ‘ के बदले अगर चित्रकार कहे कि ‘ हम सबकी कला महान’ तो झगड़े की शायद शुरुआत ही न हो। अब तुम यह बताओ कि –
(क) संगीतकार को क्या कहना चाहिए?
उ: संगीतकार को यह कहना चाहिए था कि देखा जाए तो सब अपनी कला में निपुण है, सबकी कला महान है। परंतु संगीत में मधुरता है जिसे सुनकर हम अपने दुख दर्द भूल जाते हैं। संगीत लोगों को अपने भेद-भाव भुलाकर प्रेम और सद्भाव से रहना सिखाता है।
(ख) शायर को क्या कहना चाहिए?
उ: शायर को कहना चाहिए था कि अगर संगीत प्रेम का प्रचार करता है, और चित्रकला आत्मविभोर करती है तो शायरी इंसान के रूह को छूती है। लोग शायरी से अपने आप को जोड़कर देखते हैं।
(ग) तुम यह भी बताओ कि इन सभी कलाकारों को तुम्हारे अनुसार वह संवाद क्यों कहना चाहिए?
उ: कलाकार कोई भी हो, संगीतकार हो, चित्रकार हो, या शायर, सब अपने क्षेत्र में निपुण होते हैं। सब अपनी कला को महान समझते हैं। परंतु महान कलाकार वही है जो दूसरों की कला की सराहना करें।
- वाक्यों की बात
नीचे दिए गए वाक्यों के अंत में उचित विराम चिन्ह लगाओ–
(क) शायर साहब बोले उधर जाकर सुन ले न
– शायर साहब बोले, “उधर जाकर सुन ले न।”
(ख) सभी लोग हँसने लगे
– सभी लोग हँसने लगे।
(ग) तुम नाटक में कौन-सा पार्ट कर रहे हो
– तुम नाटक में कौन-सा पार्ट कर रहे हो ?
(घ) मोहन बोला अरे क्या हुआ तुम तो अपना संवाद भूल गए
– मोहन बोला, “अरे! क्या हुआ तुम तो अपना संवाद भूल गए।”;